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शहीद सआदत ख़ान क्रांति स्थल से शुरू हुआ, आज़ाद हिन्द फौज को समर्पित कॉपियों का वितरण

1 July 2019 Shaheed Saadat Khan's Great Grandson 6th Gen Azam Khan with his Grandfather Azizullah Khan

इंदौर की शान मालवा के जांबाज़ पठान क्रांतिकारी शहीद सआदत खाँ के ‘’क्रांति दिवास’’ पर आज ‘’आज़ाद हिन्द फौज’’ को समर्पित कॉपियों का वितरण एवं विमोचन किया गया। हर साल 1 जुलाई को मध्य भारत में 1857 की क्रांति की याद में शहीदों के बलिदान और योगदान पर समर्पित कॉपियों को स्कूली छात्र-छात्राओं को पूरे देश में वितरित किया जाता है। जिसकी शुरूआत इंदौर में शहीद सआदत खां के क्रांति स्थल – रेसीडेंसी कोठी, नेहरू स्टेडियम के सामने से की जाती है। फिर पूरे देश में ज़्यादा से ज़्यादा स्कूलों में जाकर बच्चों के बीच आज़ादी के महत्व पर सोशनी डाली जाती है।

इस बार की कॉपियां आज़ाद हिन्द फौज को समर्पित हैं और इसका विमोचन शहीद सआदत खां के पड़पौत्र श्री अज़ीज़ उल्लाह ख़ान द्वारा क्रांति स्थल पर सुबह 8:30 बजे किया गाया, इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतीथि एवं वक्ता वरिष्ठ पत्रकार रूमनी घोष रहीं जिन्होंने आज़ाद हिन्द फौज के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा की जब देश में अंग्रज़ों के सामने मुंह खोलना अपराध माना जाता था ऐसे समय में सुभाष चन्द्र बोस ने भारत से बहर जाकर अपनी सैना बनाई और अंग्रेज़ों की जड़ो को कमज़ोर कर दिया।

शहीद सआदत खां के वंशज एवं वरिष्ठ पत्रकार खिलजी खालिद खान ने 1857 में 1 जुलाई के महत्व और उस दिन घटी वीर गाथा को बखूबी अंदाज़ में पेश किया। उन्होंने बताया कि-

1 जुलाई 1857 को सआदत खान के नेतृत्व में क्रांति की तोपें गड़-गड़ा उठी सुबह 8 बजे सआदत खान, भाई सरदार खां, भागिरथ सिलावट, वंस गोपाल और अन्य साथी रेसीडेन्सी कोठी जा पहुंचे उस समय कर्नल एच.एम.डूरान्ड रेसीडेंसी कोठी में अपनी टेबल पर काम कर रहा था। सआदत खां ने रेसिडेंसी पहुंच कर्नल डूरान्ड से बात करना चाहा पर उसने सआदत खां को गाली बकी जिसका उन्होंने विरोध किया इस पर डूरान्ड ने गोली मारी जो सआदत खां के कान को छुती हई निकल गयी, सआदत खां ने बचते हुए सीधे अपने घोड़ पर बैठना चाहा तो इस बीच कर्नल ट्रेवर्स वहां आ धमका उसने तलवार से सआदत खां का मुक़ाबला करना चाहा जिसमें एक गहरा घाव सआदत खां के गाल पर लगा जिससे वो लहूलुहान हो गये, अपने सरदार को लहूलुहान देख क्रांतिकारियों का गुस्सा फूट पड़ा, उधर सआदत खां ने यलग़ार भरी ” तैयार हो जाओ छोटा साहीब लोगों को मारने को, महाराज साहीब का हुक्म है” सआदत खां के आदेश पर होल्कर सैना के तोपची महमूद खां ने तोप का पहला गोला रेसीडेंसी कोठी पर दागा। गोला ठीक उसी जगह लगा जहां एच.एम.डूरांड का ऑफिस था।

उधर महू में भी 23वीं देशी पैदल सैना की टुकड़ियों ने क्रांति कर दी। कर्नल प्लाट, मेजर ट्रेरिस तथा कैप्टन फैगन को गोली से उड़ा दिया। 2 जुलाई की सुबह क्रांतिकारी सिपाही महू से इंदौर पहुंच गये और उन्होने भी सआदत खां का साथ दिया। क्रांतिकारियों ने रेसीडेंसी की छोटी इमारत में सरकारी खज़ाने को लूट लिया। इंदौर महू के क्रांतिकारियों ने मिलकर सआदत खां के नेतृत्व में परेड ग्राउंड पर परेड की..(यहां अब नेहरू स्टेडियम बन गया है)।

3 जुलाई 1857 को सआदत खां की कोशिश से बहुत सी होल्कर फौज सआदत खां की फौज से जा मिली। सआदत खां तीन हज़ार फौजियों के साथ 4 जुलाई को दिल्ली कि तरफ रवाना हो गये। देवास , मक्सी, शाजापुर,सारंगपुर होते हुए 12 जुलाई को ब्यावरा और अंत में ग्वालियर पहुंच गये। रास्ते में अंग्रेज़ी फौजों को शिकस्त देते रहे और आगे बढ़ते रहे। ग्वालियर  पहुंच कर सआदत खां ने महाराजा सिंधिया से मुलाक़ात की। शहज़ादा फिरेज़शाह भी धोलपुर से मुरार छावनी आकर सआदत खां की फौज में मिल गये। शहज़ादा फिरोज़शाह की फौज और रास्ते भर के क्रांतिकारिंयों को मिलाकर सआदत खां की फौज 8 हज़ार हो चुकी थी इन्ही फौजियों के साथ सआदत खां चम्बल पार कर धोलपुर पहुंचे, रास्ते में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए उन्हें परास्त करते हुए आगरा की ओर बढ़ गये।

20 सितंबर को आंग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। बादशाह बहादूर शाह को गिरफ्तार कर लिया गया। कर्नल ग्रिफित देहली से आगरा फौज ले आया। सआदत खां के नेत़त्व में इंदौर और महू की सेना के क्रांतिकारियों ने डटकर मुक़ाबला किया।

कार्यक्रम में ऐलान ए इंकलाब संस्था के राहुल इंकलाब ने कहा की आज़ाद हिन्द फौज़ का ये नारा “ लाल किले से उठी आवाज़,सेहगल, ढिल्लन और शाहनवाज़’’ उस समय के सबसे चर्चित नारा था जिसने बहुत अहम भुमिका निभाई।

वहीं कार्यक्रम में मौजूद नेताजी सुभाष मंच के अध्यक्ष मदन परमालिया ने शहीद सआदत खां के पड़पौत्र अज़ीज़ उल्लाह खान और परिवार की मांग को दौहराया की आज़ादी के 70 साल बाद भी काली कोठी (रेसीडेंसी) का नाम नहीं बदला गया इसे सआदत खां के नाम से किया जाना चाहिए।

इस अवसर पर, , गणमान्य नागरिक , ऐलान ए इंकलाब के साथी, राहुल इंकलाब, नेताजी सुभाष मंच के मदन परमालिया, डॉ मुस्तफा शेख़, देवीलाल गुर्जर, बांदा नवाब अवैस बहादुर, आवाज़ ग्रुप,मेहमूद भाई, मज़हर भाई बंदुकवाला,  राजेश यादव, विनीता, प्रफूल पात्रा, निखिलगुप्ता, फारूक भाई, सआदत खां परिवार से पड़पौत्र अज़ीज़उल्लहा ख़ान, रियाज़, रिज़वान, ताहीर, ख़ालीद और आज़म खान के अलावा  अन्य देश प्रेमी , नागरिक  और संगठन, रेसीडेंसी गार्डन के मार्निंग वॉकर्स,दिलिप वर्मा,महेश पलोड, सलीम पटेल,श्याम सुंदर अग्रवाल, कार्यक्रम में शामिल हुए ।

वर्तमान में इंदौर के लोक सेवा आयोग के सामने के मकान के बाहरी हिस्से से जुड़ी मज़ार इंदौर के ही नहीं बल्कि समूचे भारत के आज़ादी के परवाने सआदत खाँ कि ही मज़ार है। दरख्तों की झुकी हुई शाखाएं उस अमर शहीद सआदत खाँ की यादें आज भी हरी रखती हैं।

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