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शहीद सआदत खां की मज़ार की उपेक्षा से दुखी, भगत सिंह के भांजे

मालवा के जाँबाज़ पठान,शहीद सआदत खान को फांसी पर लटका दिया गया था, उनका कसूर बस ये था कि उन्होने अपने मुल्क की आज़ादी के लिये 1जुलाई 1857 को अंग्रेज़ों को नाको चने चबवा दिये थे।

आज एक अज़ीम शख्सियत ,प्रोफेसर जगमोहन सिंह जी जो शीहीद भगत सिंह के भांजे हैं और शहीद परिवारों के मुद्दों को उठाने का काम भी करते हैं, शहीद सआदत खां वेलफेयर सोसायटी और ऐलान-ए-इंक़लाब के कार्यक्रम के लिए शहर मे मौजूद थे। आपने शहीद सआदत खां के पड़पोते जनाब अज़ीज़उल्लाह खां से मुलाक़ात की, शहीद स्मारक पर जा कर और शहीद सआदत खान की मज़ार पर जा कर खिराज ए अक़ीदत पेश की, उनके साथ राहुल इंक़लाब, जस्टिस अनील वर्मा , रिज़वान ख़ान भी मौजूद थे। जगमोहन साहब शहीद भगत सिंह की बहन अमृत कौर के सुपुत्र हैं और उन्होने आज़ादी के पूर्व अपनी माँ की गोद मे कुछ महीने अंग्रेज़ों की जेल मे गुजारे हैं,जब वे केवल 8 माह के थे। शहीदों के परिवारों ने कई तकलीफें उठाई हैं,राजनैतिक षडयंत्रों के शिकार हुए है, आज हम इसे नही समझ सकते, कुछ लोग तो बिलकल नही, खास तौर से वो जो उस समय मुख्बिरि और ग़द्दारी कर रहे थे।

जगमोहन जी ने शाम को शहीद साअदत खान बहादुरी अवार्ड भी दिया, मरणोपरांत एक बहादुरी अवार्ड लांस नायक ज्ञान सिंह परिहार के परिजन ने गृहण किया और दूसरा अवार्ड कारगिल युद्ध मे दुश्मन के दाँत खट्टे करने वाले वीर सिपाही तनवीर हुसैन को दिया। उन्होने कहा जितना यह शहर खान पान के लिये जाना जाता है,उतना हैं सआदत खान के लिये भी जाना जान चाहिए ।

शहीद सआदत खान और उनके साथियों द्वारा की गई क्रान्ति की गाथा की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसे कुलपति महोदय,जनाब नरेंद्र धाकड़ जी ने उद्घाटित किया और सभी जानकारियों की बहुत प्रशंसा की। प्रोफेसर साहब ने भी कहा कि, इंदोर की क्रान्ति को लोगों तक पहचाने की ज़रुरत है। यह शौर्य, देशप्रेम और लीडरशिप की मिसाल है।

शहीद सआदत खान के मज़ार की उपेक्षा से दुखी हैं और,प्रशासन से इसके जीर्णोद्धार के लिये क़दम उठाना चाहिए ।

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