शहीद सआदत खां की मज़ार देख, फूट पड़े शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह के पोते

ये उस शख्स का मज़ार है, जिसने अंग्रेज़ हुकूमत की नाक में दम कर रखा था। 1 जुलाई 1857 की क्रांति सम्भवतः पहली ऐसी जंग थी जिसमे अंग्रेज़ तिलिमिला उठे थे और इंदौर ,महू सहित मालवा से दफा हो गए थे। जो साहब शहीद सआदत खां के मज़ार पर फूल चढ़ा रहे हैं वो महान क्रांतिकारी शहीद अश्फ़ाक़उल्लाह खाँ के पोते शहिद अश्फ़ाक़उल्लाह खाँ हैं। सआदत खाँ को 1 अक्टूबर 1874 को फांसी दे दी गयी थी और ये उन्हे श्रद्धांजलि देने शाहंजहांपूर उत्तर प्रदेश से खास तौर पर आये थे। अफ़सोस मगर ये शहीदों की मज़ार की दुर्दशा है, जो टाट के परदे में सिमटी हुई है…. freeslots dinogame telegram营销