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शहीद सआदत ख़ाँ : 1857 की क्रांति का एक गुमनाम नायक

शहीद सआदत ख़ाँ : 1857 की क्रांति का एक गुमनाम नायक
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आज फिर 1 अक्टूबर है। यानी इतिहास के पन्नों में आज का दिन इंदौर, 1857 का मध्य भारत और आज के अखण्ड भारत के लिये शहादत का दिन है। आज ही के दिन 1 अक्टूबर 1874 को मध्य भारत से आज़ादी की ज्वाला भड़काने वाले जिसके जन नायक थे शहीद सआदत ख़ां को फांसी दी गई थी। मालवा के इस पठान ने एक एैसी हुकूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी जिसके ख़िलाफ़ सोच रखने वालों के ख़ानदानों का नामों निशान तक मिटा दिया जाता था।
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1857 में आज का दिन ऐसा नहीं था। हिन्दुस्तान का हर इंसान अग्रेज़ी हूकूमत के अत्याचारों से परेशान हो चुका था, उनका हमारे साथ जानवरों सा सलूक हमारी संस्कृति, सोच, एकता, विचारो और आज़ादी का दुश्मन हो चुका था, हालात ऐसे हो चुके जिसमें विद्रोह होना लाज़मी था। लेकिन राजा,माहाराजा, बादशाह, सुलतान तक सब लाचार और अंग्रेज़ों के हाथों की कठपुतली बन चुके थे। एैसे हालात में सआदत खां ने क्रांति का बीड़ा उठाया। अपना घर-बार, ज़मीन-जायदाद, परिवार की फ़िक्र छोड़ मुल्क को आज़ाद कराने की ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर ली और अंग्रेज़ी हूकूमत के ख़िलाफ़ जो क्रांति छेड़ी तो मुड़कर नहीं देखा।
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1 जुलाई 1857 को सुबह 8:20 मिनट पर इंदौर रेसीडेंसी पर पहला हमला किया गया। जिसमें कई घंटों कि मुठभेड़ में इंदौर को अग्रंज़ों से आज़ाद करा लिया गया। इस हमले में ख़ुद सआदत खां को भी गम्भीर चोंट लगी पर उन्होंने परवाह नहीं की और क्रांति को जारी रखा। कुछ देर में पुरे शहर में ये ख़बर फैल गई। और इसी जगह (रेसीडेंसी) में देखते ही देखते हज़ारों देश भक्तों की भीड़ इक्ठ्ठा हो गई। सआदत ख़ां ने सब को संबोधित किया और क्रांति को आगे बढ़ाते हुए अपने कदम दिल्ली की तरफ़ मोड़ दिये। यहाँ से मिली सफ़लता के बाद , सआदत ख़ान अपने साथियों वंश गोपाल, भागीरथ सिलावट उनके भाई सरदार खां और 3000 क्रांतिकारियों को साथ लेकर हिन्दुस्तान को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराने के उद्येश से दिल्ली की और कूच कर गए।
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1857 की क्रांति अब विफ़ल होने लगी थी, 20 सितम्बर को अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और क्रांति का राष्ट्रिय नेतृत्व कर रहे बादशाह बहादूर शाह ज़फ़र को गिरफ़्तार कर लिया गया। सआदत ख़ां का साथ देने वाले बहादुर शाह के बेटे शाहज़ादा फ़िरोज़ शाह का सर क़लम कर दिया गया और कर्नल ग्रिफ़ित देहली से आगरा फ़ौज ले आया। सआदत ख़ां के नेत़त्व में इंदौर और महू की सेना के क्रांतिकारियों ने उसका डटकर मुक़ाबला किया। सब बहादुरी से लड़ते रहे मगर उन्हें परास्त होना पड़ा और क्रांतिकारी फ़ौजें बिखर गई।
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साढ़े सोलह साल तक अथार्त जनवरी 1874 तक सआदत ख़ां का पता नहीं चला कि वे आख़िर कहां हैं। वे फ़रारी में छुपते रहे लेकिन क्रांति की अलख को उन्होंने बुझने नहीं दिया। इस बीच वो जहां जहां भी रहे वहां आज़ादी के मतवालों को तैयार करते रहे। उनकी तलाश में पांच हज़ार रूपए का इनाम मुक़रर्र हुआ। 16-17 साल बाद वे बांसवाड़ा में एक नाई की मुख़बरी से गिरफ़्तार हुए। उन्हीं की ज़ुबानी से मालूम हुआ कि वे आगरा में अचानक अंग्रेज़ों द्वारा हमला किए जाने के बाद, साथी क्रांतिकारियों  द्वारा सुझाये सुरक्षित स्थान अलवर पहुंचे, यहां कुछ दिनों बाद सारंगपुर से अपने परिवार को बुलाकर रखा फिर उज्जैन चले आये, यहां सेठ गंगाधर के यहां अक़बर ख़ान नाम से नौकरी करने लगे और क्रांति की ज्वाला को बुझने नहीं दिया। दो साल उज्जैन में रहनेे के बाद कई और जगह क्रांति की अलख जगाते रहे अंत में बांसवाड़ा से उन्हें उनके चेहरे के ज़ख्म के निशान का वजह से पहचाना गया और गिरफ्तार किया गया। वे 7 जनवरी 1874 को इंदौर लाये गये।
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जनवरी 1874 से अगस्त 1874 तक सआदत ख़ां के ख़िलाफ़ उनकी अनुपस्थति में मुक़दमा चलता रहा। 2 अगस्त 1874 को सआदत ख़ां का मुक़दमा एजैंट टू दी जनरल की अदालत में शुरू हुआ। 7 सितंबर 1874 को डी.डब्ल्यू.कै.आर ने सआदत ख़ां को मौत की सज़ा सुना दी थी।
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10 सितंबर 1874 को भारत के गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने इस सज़ा पर अपनी मंज़ूरी दे दी और 26 सितंबर 1874 को महाराजा तुकोजीराव को इस की ख़बर दे दी गई।
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1 अक्टूबर 1874 की सुबह देश की आज़ादी के इस महान क्रांतिकारी सआदत ख़ां को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। जहाँ उनकी याद में स्मारक बना हुआ है। जो कि नेहरू स्टेडियम के सामने बना है।
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जिस तोप से 1 जुलाई 1857 में सआदत खां के नेतृत्व में इंदौर रेसीडेंसी पर हमला किया गया था, उसका नाम ”फ़तेह मंसूर” है अर्ताथ: दुश्मनों का सामने करने वाला; वो आज भी वहां मौजूद है।
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वर्तमान में इंदौर के लोक सेवा आयोग के सामने के मकान के बाहरी हिस्से से जुड़ी मज़ार इंदौर के ही नहीं बल्कि समूचे भारत के आज़ादी के परवाने सआदत ख़ां का ही मज़ार है। दरख्तों की झुकी हुई शाखाएं उस अमर शहीद सआदत ख़ां की यादें आज भी हरी रखती हैं।
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