शहीद सआदत खां
शहीद सआदत खां
10 मई 1857 का वह संकल्प भरा दिन जब सारा देश हिन्दुस्तान के आख़री मुग़ल बादशाह ज़फर के नेतृत्व में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ उठ खड़ा हो गया। मेरठ में क्रांति की चिंगारी सुलग पड़ी जिसमें बंगाल, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि सभी को अपने आगोश में जकड़ लिया। मेरठ में मंगल पाण्डे, पटना में बाबू कुअंर सिंह, तो इंदौर में भारत मां के एक लाड़ले सपूत मालवा के पठान, सआदत खां ने मेरठ क्रांति की चिंगारी को अंगारों में बदल दिया।
सआदत खां के पूर्वज तीन -चार पीड़ियों से होलकर फौज में खिदमत अंजाम दे रहे थे। वालिद का नाम इज़्ज़त खां रिसालदार लकब बहादूर खां था चच्चा बक्षी हफीज़ खां और भाई सरदार खां तराना में रिसालदार थे। सारंगपूर और इंदौर का रिश्ता पुराना था सआदत खां के वंशज सारांगपूर में सौदागरवाड़ी के साकिन थे। जो घोड़े और घुड़सवार सैनिकों की तिजारत करते थे और जंग के दौरान राजाओं को सवार मोहिया कराते थे।मलहार राव होल्कर की बहु अहिल्या बाई जो 20 साल कि उम्र में बेवा हो गई थीं। ऐनान ए रियासत अपने हाथ में लेकर बाहरी काम के लिए होल्कर ख़ानदान के तुकोजी राव को मुक़रर किया , दोनों ने मिलकतर 31 साल मिलकर हुकूमत की, अहिल्या बाई ने 1795 में और तुकोजी राव ने 1797 में वफात पाई। तुकोजीराव के लड़के जसवंत राव को हुकूमत नहीं मिली और काशी राव इंदौर की गद्दी पर क़ाबिज़ हो गया। जयवंत राव को सब ने धुत्तकार दिया । आखिरकार वे सारंगपूर पहुंचे , सारंगपूर में होलकर रियासत में मुलाज़िम बहुत लोग रहते थे, यहां उन्हें ज़ुबैर हुसैन खां नामी सरदार से मुलाक़ात हुई वो होलकर के नमकख़्वार थे। जसवंत राव को 40 घोड़ और घुड़सवार , 300 प्यादे और 5000 रूपए नक़द दिये और जसवंत राव कि अमीर उद्दौला से मुलाक़ात करा दी। अमीर उद्दौला और जसवंत राव ने काशी राव को शिक्सत दी और महेश्वर का क़िला फतह कर लिया। सआदत के पूर्वज इन्हीं 40 घुड़सवारों में इंदौर आये थे और होलकर फौज में अफसर बन गये। महेश्वर का क़िला 1798 में जसवंत राव के बेटे खंठी राव के नाम कर दिया गया। सआदत खां के बुज़ुर्ग ये देख रहे थे की सबसे पहले सबसे ज़्यादा ताक़तवर बालाजी राव पेशवा ने 30 दिसंबर 1802 को अंग्रेज़ों के सामने घुटने टैक दिया और खुद मुख्तियारी का ख़ातमा कर दिया। 30 दिसंबर 1803 को महाराजा दौलत राव सिंधिया ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने अहद नामें पर दस्तखत किए। महाराजा जसवंत राव होल्कर एक अरसे तक अंग्रेज़ों से लड़ते रहे जिसमें सआदत खां के पूर्वज भी शामिल थे। 1805 में दरया ए व्यास के किनारे कंपनी की शर्त पर सुलह क़ुबूल की। सुलाह नामा की शर्त पर दक्कन का एक बढ़ इलाक़ा कंपनी को देना पड़ा। 9 नवंबर 1817 को अमीरउद्दौला बहादुर ने भी सुलहनामे पर दस्ख़त कर दिये। एक बार फिर 1818 में अंग्रेज़ों और महाराजा मल्हार राव दित्तिय के बीच सुलह हुई महू और इंदौर रेसिडेंसी का इलाक़ा अंग्रेज़ों को देना पड़ा। 1801 से लेकर 1857 तक का ये समय हर हिंदुस्तानी ने देखा लेकिन सआदत खां के बुज़ूर्गों ने कुछ इसका ज़यादा ही असर लिया। जब किसी चीज़ को ज्यादा दबाया जाता है तो वो बस्ट हो जाती है और 1857 में सारे हिंदुस्तान में अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग शुरू हो गई। छावनियों पर हमले हुए अंग्रज़ मारे गये और अंग्रेज़ भागते फिर रहे थे। सआदत खां ने महाराजा तुकोजी राव दित्तिय से अर्ज़ किया हमने आपका नमक खाया है, ये एक अच्छा मौक़ा आया है आप हमारे सर पर हाथ रखें हम आपको महेश्वर, महू और रेसिडेंसी का ईलाक़ा वापस दिलाकर रहेंगे और अंग्रेज़ों के शिकंजे से आपको आज़ाद करा देंगे। अगर आप सुलाह नामा कि शर्तों के कारण ऐसा नहीं कर सकते तो आप अंग्रेज़ों को बता दिजिए के मेरे सारे फौजी अफसरान सआदत खां, भागिरथ , दुर्गा प्रसाद हवलदार, पैदल फौज का अधिकारी शैर खान, तोप ख़ाने का जमादार मोहम्मद अली, वंश गोपाल, महिदपूर कांटिजेंट के जमादार हीरा सिंह, भोपाल के वारिस मोहम्मद ख़ान, उस्ताद मौलवी अब्दुल समद बाग़ी हो गये हैं और उधर देहली में सारे हिंदुस्तान से आये 3 लाख से ज्यादा क्रांतिकारी जमा हो गये हैं। हम देहली जाकर आपका और होल्कर का नाम क्रांतिकारियों कि फेहरिस्त में लिखवायेंगे और उनसे दोस्ती का परवाना हासिल कर आपकी खिदमत में पेश करेंगे।इंदौर में जूना रिसाला और उसके आसपास, लाबरिया भेरू में उनके पास काफी जायदाद थी। 1857 की क्रांति के समय उनकी उम्र करीब 35 साल थी।
जंगे आज़ादी की शुरूआत तो 10 मई 1857 को मेरठ से हुई परन्तु यह आग सारे हिन्दुस्तान में फैल गई, उस समय राबर्ट हेमिल्टन, सेंट्रल इंडिया में एजैंट टू दी गवर्नर था और इंदौर रेसीडेंसी कोठी में रहते था वह छ: माह का छूट्टी पर इंग्लैण्ड चले गया था और उनकी जगह कर्नल एच.एम.डूरान्ड उनका कार्यभार संभाल रहा था।
इंदौर भी बग़ावत की खबरें सुनकर अछूता न रह सका सआदत खान ने 1 जुलाई 1857 को क्रांति का बिगुल बजाया।
1 जुलाई 1857 को सआदत खान के नेतृत्व में क्रांति की तोपें गड़-गड़ा उठी सुबह 8 बजे सआदत खान, भाई सरदार खां, भागिरथ सिलावट, वंस गोपाल और अन्य साथी रेसीडेन्सी कोठी जा पहुंचे उस समय कर्नल एच.एम.डूरान्ड रेसीडेंसी कोठी में अपनी टेबल पर काम कर रहे था। सआदत खां ने रेसिडेंसी पहुंच कर्नल डूरान्ड से बात करना चाहा पर उसने सआदत खां को गाली बकी जिसका उन्होंने विरोध किया इस पर डूरान्ड ने तमंचा मारा जो सआदत खां के कान को छुता हुआ निकल गया, सआदत खां ने बचते हुए सीधे अपने घोड़ पर बैठना चाहा तो इस बीच कर्नल ट्रेवर्स वहां आ धमका उसने तलवार से सआदत खां का मुक़ाबला करना चाहा जिसमें एक गहरा घाव सआदत खां के गाल पर लगा जिससे वो लहूलुहान हो गये, अपने सरदार को लहूलुहान देख क्रांतिकारियों का गुस्सा फूट पड़ा, उधर सआदत खां ने यलग़ार भरी ” तैयार हो जाओ छोटा साहीब लोगों को मारने को, महाराज साहीब का हुक्म है” सआदत खां के आदेश पर होल्कर सैना के तोपची महमूद खां ने तोप का पहला गोला रेसीडेंसी कोठी पर दागा। गोला ठीक उसी जगह लगा जहां एच.एम.डूरांड का ऑफिस था।
उधर महू में भी 23वीं देशी पैदल सैना की टुकड़ियों ने क्रांति कर दी। कर्नल प्लाट, मेजर ट्रेरिस तथा कैप्टन फैगन को गोली से उड़ा दिया। 2 जुलाई की सुबह क्रांतिकारी सिपाही महू से इंदौर पहुंच गये और उन्होने भी सआदत खां का साथ दिया। क्रांतिकारियों ने रेसीडेंसी की छोटी इमारत में सरकारी खज़ाने को लूट लिया। इंदौर महू के क्रांतिकारियों ने मिलकर सआदत खां के नेतृत्व में परेड ग्राउंड पर परेड की..(यहां अब नेहरू स्टेडियम बन गया है)।
3 जुलाई 1857 को सआदत खां की कोशिश से बहुत सी होल्कर फौज सआदत खां की फौज से जा मिली। फौजियों ने चाहा की माहाराजा तुकोजिराव होलकर उनके साथ दिल्ली चलें। इस दौरान सआदत खां महाराजा होलकर से मिले पर माहाराजा होलकर ने इंकार कर दिया और सआदत खां को गोली मारने का आदेश दे दिया, लेकिन किसी ने भी इस आदेश का पालन नहीं किया, इस पर सआदत खां को कैद करने का आदेश दिया लेकिन क्रांतिकारियों का जोश और अपने ही सिपाहियों के आगे लाचार माहाराजा ने सआदत खां को फौज का बक्षी (सैनापति) बना दिया।
सआदत खां छ: तोपों और तीन हज़ार फौजियों के साथ 4 जुलाई को ग्वालियर और आगरा की तरफ रवाना हो गये। देवास , मक्सी, शाजापुर,सारंगपुर होते हुए 12 जुलाई को ये लोग ब्यावरा पहुंचे और अंत में ग्वालियर पहुंच गये। रास्ते में अंग्रेज़ी फौजों को शिकस्त देते रहे और आगे बढ़ते रहे। ग्वालियर पहुंच कर सआदत खां ने महाराजा सिंधिया से मुलाक़ात की और उनके कहने पर फौज ने ग्वालियर में तीन हफ्ते रूक कर सही वक्त का इंतज़ार किया। शहज़ादा फिरेज़शाह भी धोलपुर से मुरार छावनी आकर सआदत खां की फौज में मिल गये। शहज़ादा फिरोज़शाह की फौज और रास्ते भर के क्रांतिकारिंयों को मिलाकर सआदत खां की फौज 8 हज़ार हो चुकी थी इन्ही फौजियों के साथ सआदत खां चम्बल पार कर धोलपुर पहुंचे, रास्ते में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए उन्हें परास्त करते हुए आगरा की ओर बढ़ गये।
20 सितंबर को आंग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। बादशाह बहादूर शाह को गिरफ्तार कर लिया गया। कर्नल ग्रिफित देहली से आगरा फौज ले आया। सआदत खां के नेत़त्व में इंदौर और महू की सेना के क्रांतिकारियों ने डटकर मुक़ाबला किया । सब बहादुरी से लड़ते रहे मगर उन्हें परास्त होना पड़ा और क्रांतिकारी फौजें बिखर गई।
साढ़े सोलह साल तक अथार्त जनवरी 1874 तक सआदत खाँ का पता नहीं चला कि वे आखिर कहां हैं। वे फरारी में छुपते रहे लेकिन क्रांति की अलख को उन्होंने बुझने नहीं दिया । इस बीच वो जहां जहां भी रहे वहां आज़ादी के मतवालों को तैयार करते रहे। उनकी तलाश में पांच हज़ार रूपए का इनाम मुकरर हुआ। 16-17 साल बाद वे बांसवाड़ा में गिरफ्तार हुए उन्हीं की ज़ुबानी मालूम हुआ कि वे आगरा से अलवर पहुंचे। कई जगह छुपते-छुपाते बांसवाड़ा में नौकरी की। वे वहां अकबर खां के नाम से रहते थे।उन्हें उनके चेहरे के ज़ख्म के निशान का वजह से पहचाना गया। वे 7 जनवरा 1874 को इंदौर लाये गये। जनवरी 1858 से अगस्त 1858 तक सआदत खाँ के ख़िलाफ उनकी अनुपस्थति में मुक़दमा चलता रहा।
2 अगस्त 1858 को सआदत खाँ का मुक़दमा एजैंट टू दी जनरल की अदालत में शुरू हुआ। 7 सितंबर 1874 को डी.डब्ल्यू.कै.आर ने सआदत खाँ को मौत की सज़ा सुना दी थी।
10 सितंबर 1874 को भारत के गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने इस सज़ा पर अपनी मंज़ूरी दे दी और 26 सितंबर 1874 को महाराजा तुकोजीराव को इस की ख़बर दे दी गई।
1 अक्टूबर 1874 की सुबह देश की आज़ादी के इस महान् क्रांतिकारी सआदत खाँ को फांसी के फन्दे पर लटका दिया गया। जहां फांसी से पहले सआदत खाँ ने एक विशाल जन समुह को संबोधित किया।
वर्तमान में इंदौर के लोक सेवा आयोग के सामने के मकान के बाहरी हिस्से से जुड़ी मज़ार इंदौर के ही नहीं बल्कि समूचे भारत के आज़ादी के परवाने सआदत खाँ कि ही मज़ार है। दरख्तों की झुकी हुई शाखाएं उस अमर शहीद सआदत खाँ की यादें आज भी हरी रखती हैं।
आज भी उपरोक्त साक्ष्य के रूप में अमर शहीद सआदत खाँ के गौरवमय परिवार में उनके प्रप्रोत्रों में मरहूम ख़ैरउल्लाह खाँ के परिवार से ग्वालियर, जनाब अनवारउल्लाह खाँ के परिवार से भोपाल, जनाब अज़ीज़उल्लाह खाँ और मरहूम डॉ. ज़काउल्लाह खाँ के परिवार से इंदौर एंव सआदत खाँ की क्रांति के समय उपस्थित नवाब बहादूर ऑफ बांदा (जिन्होंने सआदत खां को सुपर्द ऐ खाक किया ) के वर्तमान वंशज जो 1857 से बांदा कोठी जीपीओ के सामने रह रहे हैं जनाब नवाब अवैस अली बहादूर से मिला जा सकता है।