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शहीद सआदत खां की याद में ” शहीद सआदत खां बहादुरी अवार्ड”

मुहर्रम की 10 तारिक़, शहादत की रात और विजयदशमी यानि बुराई पर अच्छाई की विजय के दिन का कुछ मिश्रण था आज।
1 अक्टूबर 1874 को शहीद सआदत खां को रेसिडेंसी कोठी में उसी पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गयी थी जहाँ से उन्होंने अपने साथियों, भागीरथ सिलावट, वंशगोपाल, महमूद खा तोपची, बापू कोली, मोहम्मद अली और अन्य के साथ 1 जुलाई 1857 को अंग्रेज़ो को खदेड़ दिया था। आज उस पेड़ के नीचे उनका स्मारक बना हुआ है। आज शाहिद सआदत खां पर कई कार्यक्रम भी हुए।
ऐलान-ए-इंक़लाब और शहीद सआदत खाँ परिवार ने आज शाम प्रेस क्लब में शहिद भगत सिंह जन्मोत्सव , जिनका जन्म 28 सितंबर को हुआ था और शहीद सआदत खान की शहादत की याद में एक कार्यक्रम कर दोनों महानायकों को श्रद्धांजली दी। इस अवसर पर जनाब क्रन्तिकारी अश्फ़ाक उल्लाह खाँ के पौत्र जनाब अश्फ़ाक़ उल्लाह खाँ के साथ, शहीद भगत सिंह के साथी ,डॉ गयाप्रसाद कटियार के पुत्र श्री क्रांतिकुमार जी कटियार साहब विशेष तौर पर शहर आये थे। श्री राज्यवर्धन सिंह नरसिंहगढ़ महाराज और शहीद कूंवर चैन सिंह जी के पौत्र ने भी मंच की शोभा बढ़ाई वही क्रांतिकारी लेखक और पत्रकार श्री अरविन्द तिवारी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
शहीद सआदत खाँ की याद में बहादुरी अवार्ड दिया गया जिसमें शहीद गौतम जैन को मरणोपरांत तथा बहादुर पुलिस कर्मी अभिषेक पटेल एवं निरूपंमा और वैशाली परचुरे बहनों के नाम किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राजा नृसिगढ़ ने इस परिवार का 1824 में कुँवर चैन सिंह महाराज के साथ अंग्रेजों से लड़ते लड़ते शाहीद होने वाले हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ का भी उल्लेख किया। उन्होंने 1857 की क्रांति में राजाओं का उल्लेख भी किया।
क्रांति कुमार जी ने शहीद भगत सिंह के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला और उनके पिता के साथ साथ माताजी के समर्पण का वर्णन कर सभी श्रोताओं को भावुक भी कर दिया। महिलाओं का भावनात्मक किन्तु मज़बूत और अहम् योगदान की अद्भुत क्षमता से अवगत कराया।
अश्फ़ाक उल्लाह खाँ साहब ने अपने बेहतरीन अंदाज़ से समां बाँध दिया और शहीद अश्फ़ाक उल्लाह खाँ के शेर और अंतिम ख्वाहिश सुना कर दिल जीत लिया। अपने कई दिनों के मसरूफ कार्यक्रम के बावजूद उन्होंने शहीद सआदत खाँ परिवार के लिए वक्त निकाला और सिर्फ चंद घण्टे इंदौर रुक कर वे नागपूर के लिए रवाना हो गए।
शहीद सआदत खां के पोत्र अज़ीज़ उल्लाह खां ने सआदत खां का जीवन परिचय दिया और 1857 कि क्रांति का वर्णन कर उस दौर कि याद ताज़ा कर दी, जब अंग्रेज़ों ने हमारे मुल्क और मुल्क के राजाओं को भी कठपुतली बना रखा था साथ ही अपने बचपन के उस आखें देखे हाल से ऱूबरू कराया जब इंदौर रेसिडेंसी से यूनियन जैक उतारा जा रहा था और भारतीय तिरंगा लहराया जा रहा था, इस बात को सुन इंदौर प्रेस क्लब का हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द तिवारी जी ने अपने अध्यक्षयी भाषण में पूरे कार्यक्रम की सरहाना की और ऐसे हर आयोजक लिए ऐलान-ऐ-इंक़लाब को प्रेस क्लब का हाल उपयोग करने के लिए आमंत्रित किया।
बहादुरी अवार्ड के कार्यक्रम से पूर्व शाहीद सआदत खां परिवार के साथ, श्री अश्फ़ाक़ उल्लाह खाँ और क्रांतिकुमार जी, शहीद सआदत खान के मज़ार और शहीद बख्तावर सिंह के स्मारक श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंचे थे उनके साथ ऐलान ऐ इंक़लाब के साथी राहुल इंक़लाब , प्रफुल्ल पात्रा , निखिल गुप्ता , यादव जी एवं श्री अनिल वर्मा जी भी मौजूद थे। मज़ार और राणा बख्तावर जी की स्मारक की दुर्दशा देख दोनों ने निराशा ज़ाहिर की और श्री अरविन्द तिवारी जी से, इसे प्रेस के माध्यम से मुहीम बनाने का भी आग्रह किया। पिछली बार जब ये क्रन्तिकारी परिवार के सदस्य यहाँ आये थे तो इन्होंने ही कमिश्नर कार्यालय जा कर जीर्नोउद्दार का ज्ञापन दिया था लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। इस अवसर पर बाँदा परिवार के श्री अवेस बहादुर को भी सम्मानित किया गया जिनके पुरखों ने भी रानी झाँसी के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया था और बाद में उनके परिवार से बाँदा की नवाबी छीन कर इंदौर में नज़रबन्द कर दिया था।
उनके परिवार की ही एक बहादुर महिला ने अंग्रेजों से शहीद सआदत खाँ की लाश मांगी थी और दफनाया था, वर्ना अंग्रेजों ने तो उनकी फांसी के बाद, लाश को पेड़ पर लटका ही छोड़ दिया था।
कार्यक्रम का संचालन राहुल इंक़लाब ने किया एंव आभार निज़ाम भाई ने किया।

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