सआदत खां की याद में बहादुरी अवार्ड
इंदौर से 1857 की क्रांति का आगाज़ करने वाले सआदत खां के पड़पोते अज़ीज़उल्लाह ख़ान इंदौर में ही रहते हैं । उनके बेटे रिज़वान ख़ान और ख़िलजी खालिद ख़ान हर साल उनकी याद में देश के बहादुरों को बहादुरी अवार्ड से नवाज़ते हैं, उनके साथ ऐलान-ए-इंक़लाब के राहुल इंकलाब भी महफ़िल सजाते हैं। इस साल ये अवार्ड देने भगत सिंह के भांजे जगमोहन सिंह आएं थे, वे प्रोफ़ेसर रहे हैं और आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज तक के भारत पर उनकी नज़र है। उन्होंने गांधी जी और भगत सिंह के रिश्तों को भी छुआ और इस दौर में कुछ लोग दोनों के साथ क्या कर रहे हैं ये भी बताया उन्होंने कहा कि हम क्रांतिकारियों के वारिस इसलिए क्रांतिकारियों की याद में महफ़िल सजाते हैं कि लोग उनके विचारों, उनके कामों को भूलें ना, उनका इशारा उन लोगों की तरफ था, जिन्होंने भगतसिंह पर कब्ज़ा करने की कोशिश की है। उन्होंने भगतसिंह की डायरी सहित कई दस्तावेजों का जिक्र करते हुए कहा कि वे समाजवादी थे, उन्होंने पांच भाषाएं सीखीं थी ताकि क्रांति, धर्म और भारत की आर्थिक हालात को समझ सकें। जगमोहन सिंह ने आज के भारत का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज हम जानवर के लिए इंसान को मार रहे हैं ऐसा भारत के क्रांतिकारियों ने नहीं सोचा था। उन्होंने कार्लमार्क्स सहित कई विदेशी लेखकों और विचारकों की बात से अपनी बात को मजबूत करते हुए कहा कि तब हिन्दू-मुस्लिम एकता थी, आज नफरत फैलाई जा रही है। एक मजेदार बात उन्होंने और बताई के अंग्रेजों के जमाने में भी फेक न्यूज़ छपा करती थीं। उन्होंने कहा कि भगत सिंह सोशलिज्म और सेकुलरिज्म के पैरोकार थे और आज भारतीय संविधान से इन्हीं दो शब्दों को हटाने की कोशिश हो रही है, यह कोशिश देख कर मुझे गुस्सा आता है, क्योंकि भारत इन्हीं दो चीजों से बनता है। आज गैर बराबरी की तरफ हमें ले जाया जा रहा है, जबकि लाखों-करोड़ों लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं, उन्होंने जातिवाद को भी छुआ। कुल मिलाकर उनका भाषण कुछ लंबा जरूर था लेकिन उसमें काम की बहुत सी बातें ढूंढी जा सकती थी, उनके बाद शहर काजी डॉक्टर इशरत अली ने कहा कि क्रांतिकारियों ने हमें भारत इसलिए नहीं दिया कि हम हजार-पांच सौ में अपना वोट बेंच दें, आज हो यही रहा है कि लोग कुछ पैसे लेकर वोट डाल देते हैं और उसका खामियाजा उन्हें पांच साल उठाना पड़ता है, हमें लोगों को अपने वोट की अहमियत बताने की जरूरत है, यही हमारी क्रांतिकारियों को अकीदत होगी, भाषण को पिरोने का काम निज़ाम अली ने किया। इन बातों के साथ ही बहादुरी अवार्ड दिया गया, यह अवॉर्ड करगिल युद्ध लड़ चुके सैनिक तनवीर हुसैन को दिया गया। तनवीर हुसैन ने न सिर्फ कारगिल युद्ध लड़ा है, बल्कि बोफोर्स तोप से पाकिस्तान के छक्के भी छुड़ाएं हैं। वह फिलहाल पुलिस की नौकरी कर रहे हैं, इनके अलावा लांसनायक शहीद ज्ञानसिंह परिहार को भी बहादुरी अवार्ड दिया गया। अवार्ड समारोह दुआ हाल में हुआ और उसकी गैलरी में आज़ादी की कहानी कहती हुई नुमाइश लगाई गई थी जिसमें 1857 के आज़ादी की क्रांति के किस्से थे सआदत खां और इंदौर की कहानी थी, जो छात्रों के लिए काम की थी यकीनन वो छात्र नुकसान में रहें जिन्होंने ये नुमाइश नहीं देखीं। – आदिल सईद( लेखक दैनिक अख़बार के पत्रकार हैं)